सिरीरागु बाणी रविदास जी की l
तोही मोही मोही तोही अंतर कैसा l
कनक कटिक जल तरंग जैसा l l
जउपै हम न पाप करंता अहे अनंता l
पतितपावन नामु कैसे हुंता l l रहाउ ll
तुम्ह जु नाइक आछहु अंतरजामी l
प्रभ ते जनु जानीजै
जन ते सुआमी l l
सरीरु आराधै मोकउ बीचारु देहु l
रविदास समदल समझावै कोऊ ll
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