Saturday, November 2, 2013
Monday, October 28, 2013
Tuesday, October 22, 2013
Saturday, October 12, 2013
Friday, September 27, 2013
Definition of Democracy by - Dr. BR Ambedkar
“My definition of democracy is - A form and a method of Government whereby revolutionary changes in the social life are brought about without bloodshed. That is the real test. It is perhaps the severest test. But when you are judging the quality of the material you must put it t“My definition of democracy is - A form and a method of Go“My definition of democracy is - A form and a method of Government whereby revolutionary changes in the social life are brought about without bloodshed. That is the real test. It is perhaps the severest test. But when you are judging the quality of the material you must put it to the severest test.”
Friday, September 13, 2013
DR. BR. Ambedkar Achievements
Dr. B.R. Ambedkar Biography
Born: April 14, 1891
Place of Birth : Madhya pradesh
Died: December 6, 1956
Achievements:
Place of Birth : Madhya pradesh
Died: December 6, 1956
Achievements:
- Dr. B.R. Ambedkar was elected
as the chairman of the drafting committee that
was constituted by the Constituent Assembly to draft a constitution for the independent India. - he was the first Law Minister of India; conferred Bharat Ratna in 1990.
- Dr. B.R. Ambedkar is viewed as messiah of dalits and downtrodden in India.
- He attained a degree of Doctorate in Philosophy from Columbia University in 1916 for his thesis "National Dividend for India: A Historical and Analytical Study." From America.
- In September 1920, after accumulating sufficient funds, Ambedkar went back to London to complete his studies. He became a barrister and got a Doctorate in science.
- On September 24, 1932, Dr. Ambedkar and Gandhiji reached an understanding, which became the famous Poona Pact. According to the pact the separate electorate demand was replaced with special concessions like reserved seats in the regional legislative assemblies and Central Council of States.
- In October 1948, Dr. Ambedkar submitted the Hindu Code Bill to the Constituent Assembly in an attempt to codify the Hindu law.
- On May 24, 1956, on the occasion of Buddha Jayanti, he declared in Bombay, that he would adopt Buddhism in October.
- On 0ctober 14, 1956 he embraced Buddhism along with many of his followers.
Friday, September 6, 2013
भीम वन्दना
वन्दे अम्बेडकरम । वन्दे अम्बेडकरम ।। |
अज्ञानान्धकार कर पूषित, संगठन शिक्षा से कर भूषित , |
संघर्षाहवान नित करम ! |
वन्दे अम्बेडकरम । वन्दे अम्बेडकरम ।। |
भारत - दलित जनों के त्राता, सभी विधि विधान के ज्ञाता, |
युग - युग बन्धन मुक्तिकरम ! |
वन्दे अम्बेडकरम । वन्दे अम्बेडकरम ।। |
भारत भाल - तिलक तुम गुरुवरम !! |
वन्दे अम्बेडकरम । वन्दे अम्बेडकरम ।। |
Saturday, August 31, 2013
Friday, August 30, 2013
Golden words said by Swami Dayanand
Swami Dayanand was first in modern India to claim that we all are one jati i.e. humans and there exists no castes, what exists is varn vyastha which is entirely based on qualities, merits of any person not on basis of birth.
Thursday, August 29, 2013
आज का सुविचार
दूसरों की अपेक्षा आपको सफलता यदि देर से मिले तो
निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि मकान बनने से ज्यादा समय महल बनने में लगता है.
निराश नहीं होना चाहिये क्योंकि मकान बनने से ज्यादा समय महल बनने में लगता है.
Wednesday, August 28, 2013
Important dates in the life of Savitribai Phule
Events
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Year
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Birth of SavitriBai.(Naigaon,Tha. Khandala Dist.
Satara) Father’s name- Khandoji Nevse, Mother’s name- Laxmi.
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3rd Jan.1831
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Marriage with Jotirao Phule.
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1840
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Education started.
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1841
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Started school with Sagunabai in Maharwada.
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1847
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Country’s first school for girls was started at Bhide’s
wada in Pune and Savitribai was nominated as the first head mistress of the
school.
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1 Jan.1848
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Phule family was honoured by British government for
their works in the field of education and Savtribai was declared as the best
teacher.
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16 Nov.1852
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Infanticide prohibition home was started.
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28 Jan.1853
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Prize giving ceremony was arranged under the
chairmanship of Major Candy.
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12 Feb.1853
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“Kavya Phule”-the first collection of poems was
published.
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1854
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A night school for agriculturist and labourers was
started.
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1855
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Orphanage was started.
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1863
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Opened the well to untouchables.
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1868
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Adopted son of Kashibai, a Brahmin Widow’s Child.
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1874
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Done important work in famine and started 52 free food
hostels in Maharashatra.
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1876 to 1877
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Adopted son, Dr.Yashwant was married to the daughter of
Sasane.
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4 Feb.1889
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Death of her husband Jotirao Phule .
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28 Nov. 1890
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Died while serving the Plague paitents during plague
epidemic.
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10 March 1897
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Tuesday, August 27, 2013
आज का सुविचार
संसार में न कोई तुम्हारा मित्र है न कोई शत्रू ,
तुम्हारे अपने विचार ही शत्रू और मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है ।
तुम्हारे अपने विचार ही शत्रू और मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है ।
Begumpura Televison Mission
Our Mission is to promote and protect people who face caste-based discrimination,
social inequalities and injustice especially in all over world.
Saturday, August 24, 2013
Friday, August 23, 2013
Lines said by E.V Ramaswamy
Teachers should first teach the students what self respect is; and what courage, dignity and equality are Students should be taught to love people. |
आज का सुविचार
वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है उसके पचास संकट हैं, वो जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके एक भी संकट नहीं है.
Thursday, August 22, 2013
Tuesday, August 20, 2013
आज का सुविचार
“सभा में जो दूसरों के व्यक्तिगत दोषों को दिखाता है, वह वास्तव में अपने दोष को दिखाता है ।
Monday, August 19, 2013
कबीर वाणी
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा !
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा !
Friday, August 16, 2013
आज का सुविचार
सत्य के रास्ते पे कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है , या तो वह पूरा सफर तय नहीं करता , या सफर की शुरुवात नहीं करता ।
Thursday, August 15, 2013
बुद्ध के अनुसार धर्म यह है:
- जीवन की पवित्रता बनाए रखना
- जीवन में पूर्णता प्राप्त करना
- निर्वाण प्राप्त करना
- तृष्णा का त्याग
- यह मानना कि सभी संस्कार अनित्य हैं
- कर्म को मानव के नैतिक संस्थान का आधार मानना
Wednesday, August 14, 2013
आज का सुविचार
विद्येविना मती गेली | मतीविना नीति गेली | नीतीविना गती गेली | गतीविना वित्त गेले | वित्ताविना शुद्र खचले | इतके अनर्थ एका अविद्येने केले!
Friday, August 9, 2013
डॉ बी. र. अम्बेडकर
लोग और उनके धर्म सामाजिक मानकों द्वारा; सामजिक नैतिकता के आधार पर परखे जाने चाहिए . अगर धर्म को लोगो के भले के लिए आवशयक मान लिया जायेगा तो और किसी मानक का मतलब नहीं होगा .
आज का सुविचार
समय और स्तिथि कभी भी बदल सकती है , इसलिए हमे कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिये।
जैसे जब पक्षी जिन्दा होते है तो चीटियों को खाते है लेकिन जब वो मर जाते है तो चीटियाँ उन्हें खाती है.
हम भले ही बहुत बलवान हो लेकिन समय हमसे ज्यादा बलवान है ये बात हमे कभी नहीं भूलनी चाहिए।
Wednesday, August 7, 2013
कबीर दास जी के दोहे
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ : जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.
Tuesday, August 6, 2013
Monday, August 5, 2013
आज का सुविचार
हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है. यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है , तो उसे कष्ट ही मिलता है. यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह ख़ुशी उसका साथ कभी नहीं छोडती .
Tuesday, July 30, 2013
योन बद्धो बलि राजा
दान विन्द्र महाबलि
ते नत्वं अहं बधामी
माचल , माचल , माचल
जिस प्रकार दानवीर व महा बल शाली महाराजा बलि का धोके से तीन कदम धरती मांग कर उसका सारा राज्य हड़प लिया था , और उसे बंधक बना लिया था , वैसे ही इस मंत्र मै तुम्हे भी बंधक बना रहा हूँ . अब तू भागने की कोशिश न कर .
ब्राह्मण पुरोहित अपने यजमानो के हाथ में कलावा बांधते हुए इस मंत्र का उच्चारण करते है जिससे वह कहानी उजागर हो जाती है जिसमे विष्णु भगवान द्वारा बोना बनकर कागज पर दलित महाराजा बली के राज्य का नक्शा बनाकर उसे तीन कदम से नाप कर छल लिया था
दान विन्द्र महाबलि
ते नत्वं अहं बधामी
माचल , माचल , माचल
जिस प्रकार दानवीर व महा बल शाली महाराजा बलि का धोके से तीन कदम धरती मांग कर उसका सारा राज्य हड़प लिया था , और उसे बंधक बना लिया था , वैसे ही इस मंत्र मै तुम्हे भी बंधक बना रहा हूँ . अब तू भागने की कोशिश न कर .
ब्राह्मण पुरोहित अपने यजमानो के हाथ में कलावा बांधते हुए इस मंत्र का उच्चारण करते है जिससे वह कहानी उजागर हो जाती है जिसमे विष्णु भगवान द्वारा बोना बनकर कागज पर दलित महाराजा बली के राज्य का नक्शा बनाकर उसे तीन कदम से नाप कर छल लिया था
Monday, July 29, 2013
न जच्चा वस्लो होति ,
न जच्चा होती ब्राह्मणों
कम्मुना वसलों होति
कम्मुना होति ब्राह्मणों
जन्म से कोई नीच नहीं होता और न ही जन्म से कोई ब्राह्मण होता है , अपितु कर्म से ही कोई नीच होता है और कर्म से कोई ब्राह्मण होता है .
भगवन बुद्ध ने ब्राह्मणों द्वारा रोपित वर्ण - धर्म को नकारते हुए प्रश्न किया कि केवल ब्राह्मणों को अन्य वर्णों के लिए वर्ण - धर्म का निर्धारण करने का अधिकार किसने दिया था ? हमारा तो व्यापक धर्म मानव कल्याण के लिए होना चाहिए - बहुजन हिताय - बहुजन सुखाय
न जच्चा होती ब्राह्मणों
कम्मुना वसलों होति
कम्मुना होति ब्राह्मणों
जन्म से कोई नीच नहीं होता और न ही जन्म से कोई ब्राह्मण होता है , अपितु कर्म से ही कोई नीच होता है और कर्म से कोई ब्राह्मण होता है .
भगवन बुद्ध ने ब्राह्मणों द्वारा रोपित वर्ण - धर्म को नकारते हुए प्रश्न किया कि केवल ब्राह्मणों को अन्य वर्णों के लिए वर्ण - धर्म का निर्धारण करने का अधिकार किसने दिया था ? हमारा तो व्यापक धर्म मानव कल्याण के लिए होना चाहिए - बहुजन हिताय - बहुजन सुखाय
नहि वेरेन वेरानि सम्मनिध कुदाचन
अबेरेचन सम्मति एस धम्मो सनत्तनो
------ महात्मा बुद्ध
बैर से बैर करते रहने से बैर कभी खत्म नहीं होता
बैर से अबैर यानी प्यार करने से बैर सदा के लिए खत्म हो जाता है . यह सनातन धर्म का कथन है .
इसलिए बैरी से भी प्यार का व्यवहार करो . इससे बैर तो खत्म हो जायेगा ही , वह भी स्वयं सुधर जायेगा
अबेरेचन सम्मति एस धम्मो सनत्तनो
------ महात्मा बुद्ध
बैर से बैर करते रहने से बैर कभी खत्म नहीं होता
बैर से अबैर यानी प्यार करने से बैर सदा के लिए खत्म हो जाता है . यह सनातन धर्म का कथन है .
इसलिए बैरी से भी प्यार का व्यवहार करो . इससे बैर तो खत्म हो जायेगा ही , वह भी स्वयं सुधर जायेगा
ऋग्वेद के दसवें मण्डल में पुरुष सूक्त का मंत्र है -
ब्राहणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य कृत
उरु तदस्य यद वैश्य : पदेम्याँ शूद्रो अजायत
ब्राहणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य कृत
उरु तदस्य यद वैश्य : पदेम्याँ शूद्रो अजायत
उपरोक्त मंत्र के अनुसार ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण , बाहु से शत्री , उदर से वैश्य और पेरों से शूद्र पैदा हुए . यानी चारों वर्ण भगवन ब्रह्मा के अंगो से पैदा हुए है . जैसे सिर पूजनीय है वैसे पैर भी पूजनीय है . फिर सदियों से ब्राह्मण ही पूजनीय क्यों है ? और ब्रह्मा के पैर से पैदा हुए शूद्र पूजनीय क्यों नहीं है ? सदियों से उसे अछूत , अस्पृश्य , नीच , दास , महापातकी मानकर उसे मानवीय अधिकार और शिक्षा से वंचित अनपढ़ , गंवार , गुलाम बनाकर क्यों रखा गया ? इसके लिए कौन दोषी है ?
अष्टादश पुराणेषु
व्यासस्य वचनं द्वियम्र
परोपकाराय पुण्याय
पापाय : परपीड़नम्र
वेद व्यास का कथन है कि अठारह पुराणों में दो बातें प्रमुख है - परोपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरों के मन को पीड़ा पहुचाने से पाप लगता है
पुण्य व पाप में विश्वास रखने वाले हिन्दू धर्म के लोगों ने क्या कभी सोचा है की शूद्र लोग भी इंसान है और उनके साथ समता का व्यवहार करते हुए परोपकार करके पुण्य कमाना चाहिए , न कि उन पर उनका उत्पीड़न कर पाप कमाना चाहिए
इस डबल मानसिकता के लिए कौन दोशी है ?
व्यासस्य वचनं द्वियम्र
परोपकाराय पुण्याय
पापाय : परपीड़नम्र
वेद व्यास का कथन है कि अठारह पुराणों में दो बातें प्रमुख है - परोपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरों के मन को पीड़ा पहुचाने से पाप लगता है
पुण्य व पाप में विश्वास रखने वाले हिन्दू धर्म के लोगों ने क्या कभी सोचा है की शूद्र लोग भी इंसान है और उनके साथ समता का व्यवहार करते हुए परोपकार करके पुण्य कमाना चाहिए , न कि उन पर उनका उत्पीड़न कर पाप कमाना चाहिए
इस डबल मानसिकता के लिए कौन दोशी है ?
Sunday, July 28, 2013
स्त्रीशुद्रों नाधीयताम्र
( मनुस्म्रति )
मनुस्म्रति के आदेशानुसार स्त्री व शुद्रों के लिए शिक्षा का निषोध है यानी उन्हें शिक्षित नहीं किया जाना चाहिए
मनुस्म्रति के इस नियम के कारण हजारों साल तक स्त्रियों व शुद्रों को शिक्षा से वंचित रखकर गुलाम बनाये रखा . इससे प्रतिभा , योग्यता व पराक्रम का निरन्तर हास हुआ . इसके लिए कौन दोशी है ?
( मनुस्म्रति )
मनुस्म्रति के आदेशानुसार स्त्री व शुद्रों के लिए शिक्षा का निषोध है यानी उन्हें शिक्षित नहीं किया जाना चाहिए
मनुस्म्रति के इस नियम के कारण हजारों साल तक स्त्रियों व शुद्रों को शिक्षा से वंचित रखकर गुलाम बनाये रखा . इससे प्रतिभा , योग्यता व पराक्रम का निरन्तर हास हुआ . इसके लिए कौन दोशी है ?
जिण री धन धरती हरी
कदेई न राखिजे संग
जे राखिये संग तो
कर राखिये अपंग
इस राजस्थानी कहावत के अनुसार उस व्यक्ति को कभी भी अपने साथ नहीं रखना चाहिए , जिसकी धन - सम्पदा आपने लूट ली हो . अगर उसे साथ रखना है तो उसे इतना विक्लांग कर दो ताकि वह कभी भी विद्रोह न कर सके .
इस लोकोक्ति में आर्य व अनार्यो का सच्चा इतिहास भरा हुआ है जो दर्शाता है कि मूल निवासी अनार्यो (शुद्रों ) की धन - सम्पदा लूत कर आर्यों ने किस तरह से हजारों साल से उन्हें अपंग बनकर दलित व अछूत बनाये रखा
कदेई न राखिजे संग
जे राखिये संग तो
कर राखिये अपंग
इस राजस्थानी कहावत के अनुसार उस व्यक्ति को कभी भी अपने साथ नहीं रखना चाहिए , जिसकी धन - सम्पदा आपने लूट ली हो . अगर उसे साथ रखना है तो उसे इतना विक्लांग कर दो ताकि वह कभी भी विद्रोह न कर सके .
इस लोकोक्ति में आर्य व अनार्यो का सच्चा इतिहास भरा हुआ है जो दर्शाता है कि मूल निवासी अनार्यो (शुद्रों ) की धन - सम्पदा लूत कर आर्यों ने किस तरह से हजारों साल से उन्हें अपंग बनकर दलित व अछूत बनाये रखा
Saturday, July 27, 2013
विध्या बिन मति गई
मति बिन नीति गई
नीति बिन गति गई
गति बिन वित गया
वित बिना शूद्र बना |
यह सब अनर्थ अविध्या ने किए |
मनु स्मृति ने वर्ण व्यवस्था निर्धारित कर शूद्रो के विध्या ग्रहण करना निषेध कर दिया | इसका यह दुष्परिणाम निकला कि विध्या बिन मति नष्ट हो गई , मति बिन नीति खत्म हो गई , नीति बिन गति खत्म हो गई | गति बिन वित चला गया | वित बिना शूद्र निर्धनी बन गया | अकेली एक अविध्या ने शूद्रो को विवेकहीन , मुर्ख , गंवार , अनपढ़ , दस गुलाम बना दिया |
मति बिन नीति गई
नीति बिन गति गई
गति बिन वित गया
वित बिना शूद्र बना |
यह सब अनर्थ अविध्या ने किए |
मनु स्मृति ने वर्ण व्यवस्था निर्धारित कर शूद्रो के विध्या ग्रहण करना निषेध कर दिया | इसका यह दुष्परिणाम निकला कि विध्या बिन मति नष्ट हो गई , मति बिन नीति खत्म हो गई , नीति बिन गति खत्म हो गई | गति बिन वित चला गया | वित बिना शूद्र निर्धनी बन गया | अकेली एक अविध्या ने शूद्रो को विवेकहीन , मुर्ख , गंवार , अनपढ़ , दस गुलाम बना दिया |
अयं निज परोवेति
गणना लघु चेत्साम्र |
उदार चरिताना तु
वसुधैव कुतुम्बक्म्र ||
वेद वाक्य है - " यह मेरा है वह तेरा है , यह सोच तंगदिली लोगों की है | बड़े दिल वालों के लिए तो यह सारी धरती एक परिवार के समान है |"
ब्राहण वादी विचारधारा ने इस वेदवाक्य की उपेक्षित कर वर्णव्यवस्था कायम कर एक ही परिवार के लोगों के अन्दर जात - पात , ऊँच - नीच , भेद भाव के बीच बो दिए , जिसका ही यह परिणाम निकला कि एक ब्राहण जाति का व्यक्ति सर्वोच्च , सम्मानीय तथा शूद्र जाति का व्यक्ति , अस्पृश्य , अछूत , नीच , अधम |
गणना लघु चेत्साम्र |
उदार चरिताना तु
वसुधैव कुतुम्बक्म्र ||
वेद वाक्य है - " यह मेरा है वह तेरा है , यह सोच तंगदिली लोगों की है | बड़े दिल वालों के लिए तो यह सारी धरती एक परिवार के समान है |"
ब्राहण वादी विचारधारा ने इस वेदवाक्य की उपेक्षित कर वर्णव्यवस्था कायम कर एक ही परिवार के लोगों के अन्दर जात - पात , ऊँच - नीच , भेद भाव के बीच बो दिए , जिसका ही यह परिणाम निकला कि एक ब्राहण जाति का व्यक्ति सर्वोच्च , सम्मानीय तथा शूद्र जाति का व्यक्ति , अस्पृश्य , अछूत , नीच , अधम |
पूजियो विप्र ज्ञान गुन हीना |
पूजियो न शूद्र ज्ञान परवीना ||
गोस्वामी तुलसीदास का कहना है कि ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान गुण से रहित (मुर्ख ) हो, उसकी पूजा करनी चाहिए और शूद्र (अछूत - दलित ) चाहे कितना भी गुण ज्ञान से भरपूर (विद्वान ) हो, उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए |
यह है गोस्वामी तुलसीदास की ब्राह्मण वादी सोच |
पूजियो न शूद्र ज्ञान परवीना ||
गोस्वामी तुलसीदास का कहना है कि ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान गुण से रहित (मुर्ख ) हो, उसकी पूजा करनी चाहिए और शूद्र (अछूत - दलित ) चाहे कितना भी गुण ज्ञान से भरपूर (विद्वान ) हो, उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए |
यह है गोस्वामी तुलसीदास की ब्राह्मण वादी सोच |
रविदास बामन न पूजिये
जो हो ज्ञान गुन हीन |
पूजिये पांव चाण्डाल के
जो हो गुन ज्ञान परवीन ||
गुरु रविदास जी कहते है कि जो ब्राह्मण गुन ज्ञान से रहित हो, उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए और जो चाण्डाल ( अछूत - दलित ) गुण व ज्ञान में भरपूर है , उसकी पूजा की जानी चाहिए |
यह है संत शिदोमणि गुरु रविदास जी की गुण व ज्ञान की पारखी हरित |
जो हो ज्ञान गुन हीन |
पूजिये पांव चाण्डाल के
जो हो गुन ज्ञान परवीन ||
गुरु रविदास जी कहते है कि जो ब्राह्मण गुन ज्ञान से रहित हो, उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए और जो चाण्डाल ( अछूत - दलित ) गुण व ज्ञान में भरपूर है , उसकी पूजा की जानी चाहिए |
यह है संत शिदोमणि गुरु रविदास जी की गुण व ज्ञान की पारखी हरित |
अहिंसा परमो धर्म:
भगवान बुद्ध व भगवान महावीर जी ने कहा है कि अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है यानी किसी भी तरह की हिंसा से किसी का मन दुखाना सबसे बड़ा पाप है | उनके इस उदधोख से जहाँ यज्ञो में दी जाने वाली हजारो लिदोह पशुओं बलि को सदा के लिए रोक दिया गया , वहीँ हिंसा से उत्पीड़ित जनों को भी फुहारों से भरी शीतलता मिली | पर बुद्ध धर्म के पलायन से फिर देश में हिंसा का तांडव शुरू हो गया | दलित , शोषित , अस्पृश्य , अधूतों पर मानवीय भेदभाव और शारीरिक - मानसिक उत्पीड़न आज भी जरी है |
Friday, July 26, 2013
मनुस्मृति वास्तव में सवर्ण हिन्दुओं के अधिकारों के लिए चार्टर है , जबकि दलितों के लिए दासता की बाइबिल है
------- डॉ . बी . आर . अम्बेडकर
एक मनुष्य को इतना पतित समझा जाये कि उसको छूने से भी परहेज करें , ऐसी घृणित प्रथा हिन्दुधर्म के आलावा किसी भी अन्य धर्म में नहीं मिलेगी
सब जनों में ईश्वर को मानने वाले और व्यवहार में मनुष्य को पशु से भी ज्यादा गिर प्राणी समझने वाले लोग धूर्त और महापाखंडि है
------- डॉ . बी . आर . अम्बेडकर
Thursday, July 25, 2013
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
इस वेद वाक्य में उच्चादर्श प्रस्तुत करते हुए पृथ्वी पर रहने वाले सभी व्यक्तियों के लिए कल्याण की कामना की गई, वे निरोगी रहें और धन धान्य से भर पूर रहें और सुखी रहें और किसी को किसी तरह का दुःख या वेदना न हो, सबका भला हो
पर यह कथन केवल पुस्तकों तक सीमित रहे अगर इस पर पूरी तरह से अमल किया जाता तो यहाँ न कोई स्वर्ण होता और न आछूत, न आर्य होता और न अचार्य / न कोई दास , दस्यु , असुर, राक्षस होता और न ही नीच , कमीन , चांडाल
Tuesday, July 23, 2013
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतं गमय
यह शास्त्रों की उक्ति है जिसमे आहवान किया गया है -- असत्य से सत्य की ओर बड़े , अन्धेरे से ज्योति की ओर बड़े, और मृत्यु से अमृत की ओर बड़े
यह शास्त्रोक्ति मानवमात्र के कल्याण के लिए है, पर वर्ण व्यवस्था व जात पात के चक्कर में पढ़कर इसे भुला दिया गया
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतं गमय
यह शास्त्रों की उक्ति है जिसमे आहवान किया गया है -- असत्य से सत्य की ओर बड़े , अन्धेरे से ज्योति की ओर बड़े, और मृत्यु से अमृत की ओर बड़े
यह शास्त्रोक्ति मानवमात्र के कल्याण के लिए है, पर वर्ण व्यवस्था व जात पात के चक्कर में पढ़कर इसे भुला दिया गया
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत
अभ्युत्थानम्र अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
परित्राणाय साधुना
विनाशाय च दुष्क्र्ताम्र
धर्मसंस्थापनाथार्य
संभवामि युगे युगे
अर्थ : गीता में भगवान श्री कृष्ण जी कहते है कि, जब जब धरती पर धर्म का नाश होगा और आधर्म फैलेगा , तब तब मै धर्म के अम्युत्थान के लिए धरती पर जन्म लूँगा
भगवान श्री कृष्ण का अगर ये कथन सत्य होता तो धरती पर इतना अधर्म , पाप , दुराचार , व्यमिचार नहीं फैलता और न ही जात पात , ऊँच-नीच , भेदभाव , छुआ छात, अत्याचार, उत्पीरण दिखाई देती
अभ्युत्थानम्र अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
परित्राणाय साधुना
विनाशाय च दुष्क्र्ताम्र
धर्मसंस्थापनाथार्य
संभवामि युगे युगे
अर्थ : गीता में भगवान श्री कृष्ण जी कहते है कि, जब जब धरती पर धर्म का नाश होगा और आधर्म फैलेगा , तब तब मै धर्म के अम्युत्थान के लिए धरती पर जन्म लूँगा
भगवान श्री कृष्ण का अगर ये कथन सत्य होता तो धरती पर इतना अधर्म , पाप , दुराचार , व्यमिचार नहीं फैलता और न ही जात पात , ऊँच-नीच , भेदभाव , छुआ छात, अत्याचार, उत्पीरण दिखाई देती
Thursday, July 18, 2013
Begumpura Television
Begumpura Television is Directed specially for Dalits people under the supervision of its Chairman Dr SP Sumanakshar and Secretary Mr Jay Sumanakshar.
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