Monday, June 30, 2014

सिरीरागु बाणी रविदास जी की l


तोही मोही मोही तोही अंतर कैसा l

कनक कटिक जल तरंग जैसा l l

जउपै हम न पाप करंता  अहे अनंता l

पतितपावन  नामु कैसे हुंता l l रहाउ ll

तुम्ह जु नाइक आछहु अंतरजामी l

प्रभ ते जनु जानीजै

जन ते सुआमी l l

सरीरु आराधै मोकउ बीचारु देहु l

रविदास समदल समझावै कोऊ ll