Tuesday, July 30, 2013

योन बद्धो बलि राजा 
दान विन्द्र महाबलि 
ते नत्वं अहं बधामी 
माचल , माचल , माचल 

जिस प्रकार दानवीर व महा बल शाली महाराजा बलि का धोके से तीन कदम धरती मांग कर उसका सारा राज्य हड़प लिया था , और उसे बंधक बना लिया था , वैसे ही इस मंत्र मै तुम्हे भी बंधक बना रहा हूँ . अब तू भागने की कोशिश न कर . 

ब्राह्मण पुरोहित अपने यजमानो के हाथ में कलावा बांधते हुए इस मंत्र का उच्चारण करते है जिससे वह कहानी उजागर हो जाती है जिसमे विष्णु भगवान द्वारा बोना बनकर कागज पर दलित महाराजा बली के राज्य का नक्शा बनाकर उसे तीन कदम से नाप कर छल लिया था 

Monday, July 29, 2013

न जच्चा वस्लो होति ,
न जच्चा होती ब्राह्मणों 
कम्मुना  वसलों होति 
कम्मुना होति ब्राह्मणों 

जन्म से कोई नीच नहीं होता और न ही जन्म से कोई ब्राह्मण होता है , अपितु कर्म से ही कोई नीच होता है और कर्म से कोई ब्राह्मण होता है .

भगवन बुद्ध ने ब्राह्मणों द्वारा रोपित वर्ण - धर्म को नकारते हुए प्रश्न किया कि केवल ब्राह्मणों को अन्य वर्णों के लिए वर्ण - धर्म का निर्धारण करने का अधिकार किसने दिया था ? हमारा तो व्यापक धर्म मानव कल्याण के लिए होना चाहिए -                                              बहुजन हिताय - बहुजन सुखाय 
नहि वेरेन वेरानि सम्मनिध कुदाचन
अबेरेचन सम्मति एस धम्मो सनत्तनो
                                                  ------ महात्मा बुद्ध

बैर से बैर करते रहने से बैर कभी खत्म नहीं होता 
बैर से अबैर यानी प्यार करने से बैर सदा के लिए खत्म हो जाता है . यह सनातन धर्म का कथन है . 
इसलिए बैरी से भी प्यार का व्यवहार करो . इससे बैर तो खत्म हो जायेगा ही , वह भी स्वयं सुधर जायेगा 
ऋग्वेद के दसवें मण्डल में पुरुष सूक्त का मंत्र है -
ब्राहणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य  कृत 
उरु तदस्य यद वैश्य : पदेम्याँ शूद्रो अजायत 

उपरोक्त मंत्र के अनुसार ब्रह्मा  के मुख से ब्राह्मण , बाहु  से शत्री , उदर से वैश्य और पेरों से शूद्र पैदा हुए . यानी चारों  वर्ण भगवन ब्रह्मा के अंगो से पैदा हुए है . जैसे सिर पूजनीय है वैसे पैर भी पूजनीय है . फिर सदियों से ब्राह्मण ही पूजनीय क्यों है ? और ब्रह्मा के पैर से पैदा हुए शूद्र पूजनीय क्यों नहीं है ? सदियों से उसे अछूत , अस्पृश्य , नीच , दास , महापातकी मानकर उसे मानवीय अधिकार और शिक्षा से वंचित अनपढ़ , गंवार , गुलाम बनाकर क्यों रखा गया ? इसके लिए कौन दोषी है ?
अष्टादश पुराणेषु 
व्यासस्य वचनं द्वियम्र 
परोपकाराय पुण्याय 
पापाय : परपीड़नम्र 

वेद व्यास का कथन है कि अठारह पुराणों में दो बातें प्रमुख है - परोपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरों के मन को  पीड़ा पहुचाने से पाप लगता है 
पुण्य व पाप में विश्वास रखने वाले हिन्दू धर्म के लोगों ने क्या कभी सोचा है की शूद्र लोग भी इंसान है और उनके साथ समता का व्यवहार करते हुए परोपकार करके पुण्य कमाना चाहिए , न कि उन पर उनका उत्पीड़न कर पाप कमाना चाहिए 
इस डबल मानसिकता के लिए कौन दोशी है ?

Sunday, July 28, 2013

स्त्रीशुद्रों  नाधीयताम्र 
                         ( मनुस्म्रति )

मनुस्म्रति के आदेशानुसार स्त्री व शुद्रों के लिए शिक्षा का निषोध है यानी उन्हें शिक्षित नहीं किया जाना चाहिए 

मनुस्म्रति के इस नियम के कारण हजारों साल तक स्त्रियों व शुद्रों को शिक्षा से वंचित रखकर गुलाम बनाये रखा . इससे प्रतिभा , योग्यता व पराक्रम का निरन्तर हास हुआ . इसके लिए कौन दोशी  है ?
जिण री धन धरती हरी 
कदेई न राखिजे संग 
 जे राखिये संग तो 
कर राखिये अपंग 

इस राजस्थानी कहावत के अनुसार उस व्यक्ति को कभी भी अपने साथ नहीं रखना चाहिए , जिसकी धन - सम्पदा आपने लूट ली हो . अगर उसे साथ रखना है तो उसे इतना विक्लांग कर दो ताकि वह कभी भी विद्रोह न कर सके . 

इस लोकोक्ति में आर्य व अनार्यो का सच्चा इतिहास भरा हुआ है जो दर्शाता है कि मूल निवासी अनार्यो (शुद्रों ) की धन - सम्पदा लूत  कर आर्यों ने किस तरह से हजारों साल से उन्हें अपंग बनकर दलित व अछूत बनाये रखा 

Saturday, July 27, 2013

विध्या बिन मति गई
मति बिन नीति गई
नीति बिन गति गई
गति बिन वित गया
वित बिना शूद्र बना |
यह सब अनर्थ अविध्या ने किए |
 

मनु स्मृति ने वर्ण व्यवस्था निर्धारित कर शूद्रो के विध्या ग्रहण करना निषेध कर दिया | इसका यह दुष्परिणाम निकला कि विध्या बिन मति नष्ट हो गई , मति बिन नीति खत्म हो गई , नीति बिन गति खत्म हो गई | गति बिन वित चला गया | वित बिना शूद्र निर्धनी बन गया | अकेली एक अविध्या ने शूद्रो को विवेकहीन , मुर्ख , गंवार , अनपढ़ , दस गुलाम बना दिया |
अयं निज परोवेति
गणना लघु चेत्साम्र |
उदार चरिताना तु
वसुधैव कुतुम्बक्म्र ||

 

वेद वाक्य है - " यह मेरा है वह तेरा है , यह सोच तंगदिली लोगों की है | बड़े दिल वालों के लिए तो यह सारी धरती एक परिवार के समान है |"

ब्राहण वादी विचारधारा ने इस वेदवाक्य की उपेक्षित कर वर्णव्यवस्था कायम कर एक ही परिवार के लोगों के अन्दर जात - पात , ऊँच - नीच , भेद भाव के बीच बो दिए , जिसका ही यह परिणाम निकला कि एक ब्राहण जाति का व्यक्ति सर्वोच्च , सम्मानीय तथा शूद्र जाति का व्यक्ति , अस्पृश्य , अछूत , नीच , अधम |
जो तू चाहे मुझको , छाड़ सकल की आस |
मुझ ही ऐसा होय रहो , सब सुख तेरे पास ||

सद्गुरु कबीर साहेब कहते है  जिस परमात्मा को तुम पाना चाहते हो तो सारी कामनाओं व आशाओं को छोड़कर मेरे समान हो जाओ , बस मानो सब कुछ सुख तुम्हारे पास है |

पूजियो विप्र ज्ञान गुन हीना |
पूजियो न शूद्र ज्ञान परवीना ||

गोस्वामी तुलसीदास का कहना है कि ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान गुण से रहित (मुर्ख ) हो, उसकी पूजा करनी चाहिए और शूद्र (अछूत - दलित ) चाहे कितना भी गुण ज्ञान से भरपूर (विद्वान ) हो, उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए |
यह है गोस्वामी तुलसीदास की ब्राह्मण वादी सोच |

रविदास बामन न पूजिये
जो हो ज्ञान गुन हीन |
पूजिये पांव चाण्डाल के
जो हो गुन ज्ञान परवीन ||
गुरु रविदास जी कहते है कि जो ब्राह्मण गुन ज्ञान से रहित हो, उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए और जो चाण्डाल ( अछूत - दलित ) गुण व ज्ञान में भरपूर है , उसकी पूजा की जानी चाहिए |
यह है संत शिदोमणि गुरु रविदास जी की गुण व ज्ञान की पारखी हरित |

अहिंसा परमो धर्म:

भगवान बुद्ध  व भगवान महावीर जी ने कहा है कि अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है यानी किसी भी तरह की हिंसा से किसी का मन दुखाना सबसे बड़ा पाप है | उनके इस उदधोख से जहाँ यज्ञो में दी जाने वाली  हजारो लिदोह पशुओं बलि को सदा के लिए रोक दिया गया , वहीँ हिंसा से उत्पीड़ित जनों को भी फुहारों से भरी शीतलता मिली | पर बुद्ध धर्म के पलायन से फिर देश में हिंसा का तांडव शुरू हो गया | दलित , शोषित , अस्पृश्य , अधूतों पर मानवीय भेदभाव और शारीरिक - मानसिक उत्पीड़न आज भी जरी है | 

Friday, July 26, 2013

किसी बात को इसलिए मत मानो  क्योंकि वह धार्मिक पुस्तक में लिखी है किसी बात को इसलिए भी न मानो की वह किसी धर्मगुरु  ने कही है  किसी बात को तब तक न मानो जब तक वह तुम्हारे मन की कसोटी पर पूरी  तरह सच साबित न हो जाए
                                             
मनुस्मृति  वास्तव में सवर्ण हिन्दुओं के अधिकारों के लिए चार्टर है , जबकि दलितों के लिए दासता की बाइबिल है
                                       ------- डॉ . बी . आर . अम्बेडकर

एक मनुष्य को इतना पतित समझा जाये कि उसको छूने से भी परहेज करें , ऐसी घृणित प्रथा हिन्दुधर्म के आलावा किसी भी अन्य धर्म में नहीं मिलेगी

सब जनों में ईश्वर को मानने वाले और व्यवहार में मनुष्य को पशु से भी ज्यादा गिर प्राणी समझने वाले लोग धूर्त और महापाखंडि है
                                         ------- डॉ . बी . आर . अम्बेडकर

Thursday, July 25, 2013

सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।

इस वेद वाक्य में उच्चादर्श प्रस्तुत करते हुए पृथ्वी पर रहने वाले सभी व्यक्तियों के लिए कल्याण की कामना की गई, वे निरोगी रहें और धन धान्य से भर पूर रहें और सुखी रहें और किसी को किसी तरह का दुःख या वेदना न हो, सबका भला हो 
पर यह कथन केवल पुस्तकों तक सीमित रहे अगर इस पर पूरी तरह से अमल किया जाता तो यहाँ न कोई स्वर्ण होता और न आछूत, न आर्य होता और न अचार्य / न कोई दास , दस्यु , असुर, राक्षस होता और न ही नीच , कमीन , चांडाल 

Tuesday, July 23, 2013

असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मा अमृतं गमय

यह शास्त्रों की उक्ति है जिसमे आहवान किया गया है -- असत्य से सत्य की ओर बड़े , अन्धेरे से ज्योति की ओर बड़े,  और मृत्यु से अमृत की ओर बड़े 

यह शास्त्रोक्ति मानवमात्र के कल्याण के लिए है, पर वर्ण व्यवस्था व जात पात के चक्कर में पढ़कर इसे भुला दिया गया 
अतो दीपो भव: 

भगवन बुद्ध ने कहा - "आप अपने दीपक स्वयं बने उधार के प्रकाश पर विश्वास न करें "
यानी जब तक किसी बात के लिए आपका मन न माने , आप उसे स्वीकार न करें भले ही वह वेद या बुद्ध वाक्य हो . आपका मन जिस बात को सच माने , उसे ही आप स्वीकारें 
अपूज्या यत्र पूज्यन्ते , पूज्यनाम्र च विमानता 
त्रीणि तत्र  प्रवर्तन्ते दुर्भिश, मरण , भयम्र

धूर्त लोगो का जहाँ मान सम्मान होता है  और पूज्य अर्थात विद्वानों का जहाँ अपमान व् निरादर होता है वहां तीन बातें अवश्य होंगी -  भयंकर अकाल , आकाल मृत्यु और भयपूर्ण वातावरण 
न त्वहं कामये राज्यम्र, न स्वर्ग न पुनर्मव्म्र
कामये दुःख त्प्तानाम्र, प्राणी नान्र आर्तिनाशन्म्र

नहीं चाहिए राज्य मुझे, न स्वर्ग न जन्म लू दूजा 
केवल दीन दुखी की सेवा , यही कामना पूजा 
यानी दीन दुखियों की सेवा ही परम सुखदायक है. 
  यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत  
  अभ्युत्थानम्र अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम 
  परित्राणाय साधुना
  विनाशाय च दुष्क्र्ताम्र
  धर्मसंस्थापनाथार्य
  संभवामि युगे युगे 

अर्थ : गीता में भगवान श्री कृष्ण जी कहते है कि, जब जब धरती पर धर्म का नाश होगा और आधर्म फैलेगा , तब तब मै धर्म के अम्युत्थान के लिए धरती पर जन्म लूँगा 

 भगवान श्री कृष्ण का अगर ये कथन सत्य होता तो धरती पर इतना अधर्म , पाप , दुराचार , व्यमिचार नहीं फैलता और न ही जात पात , ऊँच-नीच , भेदभाव , छुआ छात, अत्याचार, उत्पीरण दिखाई देती 

Monday, July 22, 2013

न मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे  कैलाश में |मुझको कहाँ ढूंढे रे बन्दे मै तो तेरे पास में |

सद्गुरु कबीर साहेब कहते है कि लॊग भगवन को मंदिर , मस्जिद , काबा , और कैलाश में खोजते है पर वह वहां नहीं रहता | वह तो उन दीन दुखियों के पास में रहता है जो उनके आस पास ही रहते है|

नीचा अन्दर नीच जात, नीच हूँ अति नीच |नानक तिनके संग साथबद्यों सीऊं क्या रीस ||                         ------गुरु नानक जी
गुरु नानक देव जी जात पात पर प्रहार करते हुए कहते है की नीचो में जो नीच जात है , और उस नीच जात से भी अति नीच जो जात है, उस जात के लोगों के मै साथ हूँ | मुझे बड़े लोगों से क्या लेना |

Thursday, July 18, 2013

Kabir Das Ke Dohe

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।

अर्थ : कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।


Begumpura Television

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