Monday, June 30, 2014
Tuesday, May 20, 2014
Saturday, May 17, 2014
Wednesday, May 14, 2014
Budh Purnima
ध्यान में है वास्तविक सुख
ज्ञान में है असीम शांति
सदा रहे प्रभु का ध्यान
यही कहते है बुद्ध भगवान..!
ज्ञान में है असीम शांति
सदा रहे प्रभु का ध्यान
यही कहते है बुद्ध भगवान..!
Monday, May 5, 2014
Thursday, May 1, 2014
Tuesday, April 29, 2014
Thursday, January 30, 2014
Tuesday, January 28, 2014
कबीर (Kabir)
मोको कहां ढूँढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ मे ना मूरत में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किरिया करम में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालास में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूं विश्वास में
मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ मे ना मूरत में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किरिया करम में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालास में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूं विश्वास में
Saturday, January 25, 2014
कबीर दास जी के दोहे
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
अर्थ : मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा !
Friday, January 3, 2014
ज़रूरत है तो बस इक इंसान की
ना मज़हब की ना भगवान की
ज़रूरत है तो बस इक इंसान की.
गूँज रही चीखों और चीत्कारों को जो सुन पाये
टूट रहे सपनो के टुकड़ो को जो चुन पाये
अंधियारी राहों में खोयी आशाएं जो बुन पाये
ऐसे दयावान की.
ना मज़हब की ना भगवान की
ज़रूरत है तो बस इक इंसान की.
कदम-कदम पे सरहद की दीवारों को जो फोड़ सकेजाति,
धर्म, समाज की दरारो को जो जोड़ सके
जंग लगे दिल के दरवाजों के ताले जो तोड़ सके
ऐसे ऊर्जावान की.
ना मज़हब की ना भगवान की
ज़रूरत है तो बस इक इंसान की.
ज़रूरत है तो बस इक इंसान की.
गूँज रही चीखों और चीत्कारों को जो सुन पाये
टूट रहे सपनो के टुकड़ो को जो चुन पाये
अंधियारी राहों में खोयी आशाएं जो बुन पाये
ऐसे दयावान की.
ना मज़हब की ना भगवान की
ज़रूरत है तो बस इक इंसान की.
कदम-कदम पे सरहद की दीवारों को जो फोड़ सकेजाति,
धर्म, समाज की दरारो को जो जोड़ सके
जंग लगे दिल के दरवाजों के ताले जो तोड़ सके
ऐसे ऊर्जावान की.
ना मज़हब की ना भगवान की
ज़रूरत है तो बस इक इंसान की.
Thursday, January 2, 2014
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.
बौद्ध धर्म एवं संघ
बौद्ध धर्म सभी जातियों और पंथों के लिए खुला था। उसमें हर आदमी का स्वागत था। ब्राह्मण हो या चांडाल, पापी हो या पुण्यात्मा, गृहस्थ हो या ब्रह्मचारी सबके लिए उनका दरवाजा खुला था। उनके धर्म में जात-पाँत, ऊँच-नीच का कोई भेद-भाव नहीं था। बुद्ध के धर्म प्रचार से भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी। बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी उनके शिष्य बनने लगे। शुद्धोधन और राहुल ने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। भिक्षुओं की संख्या बहुत बढ़ने पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई। बाद में लोगों के आग्रह पर बुद्ध ने स्त्रियों को भी संघ में ले लेने के लिए अनुमति दे दी, यद्यपि इसे उन्होंने विशेष अच्छा नहीं माना। भगवान बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोककल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को इधर-उधर भेजा। अशोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम् भूमिका निभाई। मौर्यकाल तक आते-आते भारत से निकलकर बौद्द धर्म चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका आदि में फैल चुका था। इन देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक धर्म है।
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