Tuesday, August 6, 2013

संत रविदास के दोहे

तोही मोही मोही तोही अंतरु कैसा ॥ कनक कटिक जल तरंग जैसा ॥१॥
जउ पै हम न पाप करंता अहे अनंता ॥ पतित पावन नामु कैसे हुंता ॥१॥ रहाउ ॥
तुम्ह जु नाइक आछहु अंतरजामी ॥ प्रभ ते जनु जानीजै जन ते सुआमी ॥२॥
सरीरु आराधै मो कउ बीचारु देहू ॥ रविदास सम दल समझावै कोऊ ॥३॥



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