ऋग्वेद के दसवें मण्डल में पुरुष सूक्त का मंत्र है -
ब्राहणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य कृत
उरु तदस्य यद वैश्य : पदेम्याँ शूद्रो अजायत
ब्राहणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य कृत
उरु तदस्य यद वैश्य : पदेम्याँ शूद्रो अजायत
उपरोक्त मंत्र के अनुसार ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण , बाहु से शत्री , उदर से वैश्य और पेरों से शूद्र पैदा हुए . यानी चारों वर्ण भगवन ब्रह्मा के अंगो से पैदा हुए है . जैसे सिर पूजनीय है वैसे पैर भी पूजनीय है . फिर सदियों से ब्राह्मण ही पूजनीय क्यों है ? और ब्रह्मा के पैर से पैदा हुए शूद्र पूजनीय क्यों नहीं है ? सदियों से उसे अछूत , अस्पृश्य , नीच , दास , महापातकी मानकर उसे मानवीय अधिकार और शिक्षा से वंचित अनपढ़ , गंवार , गुलाम बनाकर क्यों रखा गया ? इसके लिए कौन दोषी है ?
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