यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत
अभ्युत्थानम्र अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
परित्राणाय साधुना
विनाशाय च दुष्क्र्ताम्र
धर्मसंस्थापनाथार्य
संभवामि युगे युगे
अर्थ : गीता में भगवान श्री कृष्ण जी कहते है कि, जब जब धरती पर धर्म का नाश होगा और आधर्म फैलेगा , तब तब मै धर्म के अम्युत्थान के लिए धरती पर जन्म लूँगा
भगवान श्री कृष्ण का अगर ये कथन सत्य होता तो धरती पर इतना अधर्म , पाप , दुराचार , व्यमिचार नहीं फैलता और न ही जात पात , ऊँच-नीच , भेदभाव , छुआ छात, अत्याचार, उत्पीरण दिखाई देती
अभ्युत्थानम्र अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
परित्राणाय साधुना
विनाशाय च दुष्क्र्ताम्र
धर्मसंस्थापनाथार्य
संभवामि युगे युगे
अर्थ : गीता में भगवान श्री कृष्ण जी कहते है कि, जब जब धरती पर धर्म का नाश होगा और आधर्म फैलेगा , तब तब मै धर्म के अम्युत्थान के लिए धरती पर जन्म लूँगा
भगवान श्री कृष्ण का अगर ये कथन सत्य होता तो धरती पर इतना अधर्म , पाप , दुराचार , व्यमिचार नहीं फैलता और न ही जात पात , ऊँच-नीच , भेदभाव , छुआ छात, अत्याचार, उत्पीरण दिखाई देती
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