अष्टादश पुराणेषु
व्यासस्य वचनं द्वियम्र
परोपकाराय पुण्याय
पापाय : परपीड़नम्र
वेद व्यास का कथन है कि अठारह पुराणों में दो बातें प्रमुख है - परोपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरों के मन को पीड़ा पहुचाने से पाप लगता है
पुण्य व पाप में विश्वास रखने वाले हिन्दू धर्म के लोगों ने क्या कभी सोचा है की शूद्र लोग भी इंसान है और उनके साथ समता का व्यवहार करते हुए परोपकार करके पुण्य कमाना चाहिए , न कि उन पर उनका उत्पीड़न कर पाप कमाना चाहिए
इस डबल मानसिकता के लिए कौन दोशी है ?
व्यासस्य वचनं द्वियम्र
परोपकाराय पुण्याय
पापाय : परपीड़नम्र
वेद व्यास का कथन है कि अठारह पुराणों में दो बातें प्रमुख है - परोपकार करने से पुण्य मिलता है और दूसरों के मन को पीड़ा पहुचाने से पाप लगता है
पुण्य व पाप में विश्वास रखने वाले हिन्दू धर्म के लोगों ने क्या कभी सोचा है की शूद्र लोग भी इंसान है और उनके साथ समता का व्यवहार करते हुए परोपकार करके पुण्य कमाना चाहिए , न कि उन पर उनका उत्पीड़न कर पाप कमाना चाहिए
इस डबल मानसिकता के लिए कौन दोशी है ?
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